डा रिचर्ड एल बेंकिन
हिन्दू महिलाओ ने ढाका मे अपने शिविर मे त्योहार मनाया जो बंगलादेश की राज धानी ढाका मे स्थित है। कमोवेश मुस्लिम देशो मे हिन्दुओं की स्थिति इतनी नारकीये है कि ये लोग मौके के तलाश मे रहते है कि अपने आप को बचाने के लिए भारत भाग आये। शिकागो अमेरिका मे पिछले शताब्दी के मध्य मे नरसंहार करने के प्रयास हुए। नाजी ने 6 मीलियन यहूदी को 1940 के आस पास मौत के घाट उतार दिये थे। 1960 मे फुलानी के सहयोग से एक मीलियन इब्बोस काबिलाई को मौत की सजा दी। एक मीलियन तुती को रवांडा मे इसी तरह हत्या कर दी गई। इसी तरह सर्व मे दस हजार अलबिनायी को कोसोवो मे मौत के नीद सुला दिए गए। धार्मिक और जातीय हिंसा से पूरा विश्व परेशान है। अमेरिका , सन्युक्त राष्ट्र अमेरिका, मानवाधिकार आयोग समय समय पर इस तरह के अमानवीय हिंसा का विरोध करते रहते है लेकिन हिंसा बदस्तूर जारी रहती है। बहुत से नामचीन लोगो ने अपने स्तर पर विरोध व्यक्त भी करते रहते है। यह सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध होता है। हत्या करने या करवाने वालो पर इसका असर विल्कुल नही पडता है।
बंग्लादेश की स्थापना 1971 मे हुई। उसके वाद से वहा पर जातीय हिंसा
का दौर जारी है । खास तौर पर हिन्दूओ को निशाना बनाया जा रहा है। जब
बंग्लादेश को आजादी मिली थी उस वक्त पांच मे एक व्यक्ति हिन्दू हुआ करता
था । आजकल इनकी अबादी घटकर दस मे एक हो गई है। बीस मीलियन बंग्लादेशी
हिन्दू नजर ही नही आ रहे है। बंग्लादेशी हिन्दूओ को बचाने के लिए एंजिला
जोली भी आगे आ रही है। यूएन हाई कमीशनर ने भी इस पर विरोध व्यक्त किया है।
विलुप्त होती हिन्दूओ की आबादी को कैसे बचाया जाय इस पर माथापच्ची हो रही
है पर समाधान नही निकल पा रहा है। अंतराष्ट्रीय समुदाय चुप्पी साधे बैठा
है। ग्वाटेमाला और इजरायल मे कैदियो पर अत्याचार होता है तो वेब पेजो पर
इसकी चर्चा भडी पडी रहती है। लेकिन बंग्लादेश के हिन्दूओ पर अत्याचार होता
है तो ये सारी संस्थाओ के लोग सोये रहते है। 2006 मे मानवाधिकार संस्था ने
बंग्लादेशी हिन्दूओ के बारे मे बस जिक्र किया था।
यह पहली बार नही हुआ है कि सारा संसार बंग्लादेशी हिन्दूओ पर हो रही अत्याचार को आंखे मून्द कर देख रहा है, जब बंग्लादेश के युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना ने तीन मीलियन बंग्लादेशी हिन्दूओ को मौत के घाट उतार दिये थे तब भी कोई हलचल नही हुई थी। हिन्दूओ के साथ बल्लातकार होते है , सभी चुपचाप रहते है लेकिन यदि ऐसी घटना कोसोवो मे होती है तो पूरी पश्चिम मीडिया हाथ धोकर इस समाचार के पीछे पड जाती है अगर इस तरह की घटना बंग्लादेश मे होती है तो कोई फर्क नही पडता है। हमने दो दर्जन से ज्यादा कैम्पो का दौरा किया और लोगो से मदद की गुहार की पर कोई मदद नही मिला । बहुत सारे शरणार्थी इतने भयभीत है कि वे अपने धार्मिक पहचान छुपाने का प्रयास करते है। इन्हे इस्लामी आतंकवादी से इतना भय है कि सही बात भी बताने से परहेज करते है। मैने भारत मे रह रहे अपने पत्रकार मित्रो को बताया कि बंग्लादेशी हिन्दूओ की स्थिति बहुत ही दयनीय है और बंग्लादेशी इस्लामी आतंकवादी उनका जीना दुर्लभ कर रखा है पर क्या वजह है कि भारतीय हिन्दूओ द्वारा इस तरह व्यवहार मेरे लिए आश्चर्य का विषय है। इन हिन्दूओ की पडोसी राज्य बंगाल मे स्थिति और नारकीय हो जाती है उन्हे वोटर आई कार्डॅ तब मिलता है जब माकपा के सद्स्य लिख कर देते है अन्यथा नही मिलता है। आर्थिक और सैनिक तौर शक्तिशाली होने के वावजूद भारत हिन्दूओ की रक्षा करने मे असमर्थ है। भारत विदेशो मे भी इनकी बात नही उठा पाता है।
महान भारत अपनी सीमा की रक्षा करने मे असमर्थ साबित
हो रहा है यह चिंता का विषय है। यह नही कि हिन्दूओ को कोई नही पुछ रहा है।
इन हिन्दूओ पर हमला पश्चिम बंगाल के सरकार के जानकारी मे हो रहा है। वहा
की सरकार मुक दर्शक बनी है। जब मै एक शिविर के दौरे पर था माकपा समर्थक
हिन्दूओ पर हमला कर रहे थे तो एक शरणार्थी ने आयुक्त के सामने खडे हो कर
माकपा के जुल्म का विरोध किया और कहा कि मै डरने वाली नही हु। क्या सरकार
की नजर मे जान से ज्यादा वोट किमती है, क्या यह छद्म्य धर्मनिरपेक्ष नीति
का प्रारुप है? क्या यह उन दलो के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह नही लगा रही
है जिन्हे मुसलमानो के वोट नही मिलते है फिर भी वे चुपचाप है, मेरा इशारा
भाजपा के तरफ है। वे क्यो नही बंग्लादेशी हिन्दूओ का मुद्दा उठाते है वजह
इनकी जनसंख्या का कम होना तो नही है। जब मै शिवरो का दौरा कर रहा था तो
मैने शिविर मे रह रहे लोगो से बातचीत की तो मालुम हुआ कि इनको अपने अधिकार
के बारे मे कुछ नही पता है। लोगो से बातचीत के दौरान यह भी जानने का
प्रयास किया कि 800 मीलियन हिन्दू क्यो चुप है इसका जबाब किसी के पास नही
था शायद मेरे पास भी नही है। क्या आपके पास है? पहले इस्लामी आतंकवादी
इन्हे बंग्लादेश और उसके सीमा से जुडे स्थानो पर मारते थ्रे। अब तो
इस्लामी आतंकवाद भारत के अन्दर फैल गया है फिर भी चुप है यही सोचने का
बिषय है।
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